अलंकार Alankar In Hindi – परिभाषा ,3 प्रकार व उदाहरण

हिंदी हमारी मातृभाषा है लेकिन इसके बावजूद भी कहीं लोग हिंदी को ही शुद्ध रूप में नहीं बोल पाते हैं इसका मुख्य कारण है लोगो का सही तरह से हिंदी व्याकरण की जानकारी पर पकड़ का न होना।

हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण Topic है अलंकार।इस पोस्ट में आप जानेंगे कि (Alankar In Hindi ) अलंकार क्या होते है? अलंकार के कितने प्रकार होते है? और वो भी उदहारण के साथ।”

अलंकार क्या है? परिभाषा(Alankar in Hindi- Defination)

Alankar
Alankar

हिंदी भाषा में अलंकार का अर्थ है “काव्य के सौंदर्य को बनाने वाले अपादान अलंकार कहलाते हैं”

‘अलंक्रियते इति अलंकार:’ अर्थात जो अलंकृत या आभूषित करे वो अलंकार कहलाता है। 

जिस प्रकार आभूषण एक स्त्री की सुंदरता में चार चांद लगा देते है उसी प्रकार अलंकार काव्य के सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार- ” भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं के रूप,गुण और क्रिया का अधिक तीव्र अनुभव कराने में कभी-कभी सहायक होने वाली उक्ति अलंकार है।

 अलंकार के प्रकार (Types Of Alankar)

अलंकार मुख्य तीन प्रकार के होते हैं।

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार
  3. उभयालंकार

1.शब्दालंकार

जब अलंकार का चमत्कार शब्द में निहित होता है तब वहां शब्दालंकार होता है। यहां शब्द का पर्याय रखने पर चमत्कार खत्म हो जाता है।

अनुप्रास, लाटानुप्रास, यमक ,श्लेष,वक्रोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश पुनरुक्तिवदाभास, विप्सा आदि शब्दालंकार है।

अनुप्रास अलंकार

जहां वाक्य में समान वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार हो तो वहां अनुप्रास अलंकार होता है।वर्णों की आवृत्ति में स्वरों का समान होना आवश्यक नहीं होता है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थी जल-थल में।

इस वाक्य में ‘च’ वर्ण की आवृत्ति तीन बार हुई है।

 अनुप्रास अलंकार के भेद

अनुप्रास अलंकार के मुख्यत: चार भेद होते हैं।

  1. छेकानुप्रास
  2. वर्त्यनुप्रास
  3. श्रुत्यनुप्रास
  4. अंत्यानुप्रास

यमक अलंकार

एक ही शब्द का वर्ण समूह दो या दो से अधिक बार भिंड भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है तब वहां पर यमक अलंकार होता है।जैसे

यमक अलंकार के उदाहरण

कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकायया खाए बोराय जग, वा पाये बोराय ।।
तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती है।
कुमुदिनी मानस मोदिनी कही।

2.अर्थालंकार

जब अलंकार का चमत्कार उसके शब्दों के स्थान पर अर्थ में निहित हो तो वहां अर्थालंकार होता है। यहां पर्यायवाची शब्द रखने पर भी चमत्कार बना रहता है।

उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा, उदाहरण, विरोधाभास आदि अर्थालंकार है।

उपमा अलंकार

जब किन्ही दो वस्तुओं में रंग, रूप, गुण, क्रिया और स्वभाव आदि के कारण समानता या तुलना प्रदर्शित की जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है।

उपमा अलंकार के अंग-

1. उपमेय – जो वर्णन का विषय हो या जिसकी तुलना की जाए अर्थात वर्णित वस्तु।

2.उपमान – जिस से तुलना की जाए अर्थात जिससे उपमा की जाए।

3.समतावाचक शब्द – जिन शब्दों से समता दर्शाई जाए जैसे सा,सी ,से सरीस, सम, समान आदि शब्द।

4.साधारण गुण धर्म – जिस समान गुण के कारण तुलना की जाए जैसे – सुंदरता आदि।

उपमा अलंकार के भेद-

  1. पूर्णोपमा – जहां उपमा अलंकार के चारों अंग वर्णित हो।
  2. लुप्तोपमा – जब चारों में से कोई एक या एक अधिक अंग लुप्त हो।
  3. मालोपमा – जब किसी एक ही रूप में की तुलना एकाधिक उपमानों से की जाए।

उपमा अलंकार के उदाहरण-

मुख चंद्रमा के समान सुंदर है।
पीपर पात सरिस मन डोला।
हंसने लगे तब हरि अहा 
पूर्णेन्दु-सा मुख खिल गया।

रूपक अंलकार

जब उपमेय में उपमान को अभेद रूप से दर्शाया जाए, तब वहां रूपक अलंकार होता है। इसमें उपमेय में उपमान का आरोप किया जाता है।

रूपक अलंकार के तीन भेद होते हैं-

  1. सांग रूपक 
  2. निरंग रूपक
  3. परंपरित रूपक

रूपक अलंकार के उदाहरण-

चरन-सरोज पखारन लागा
बीती विभावरी जाग री
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नागरी।
उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल-पतंग ।
बिकसे संत-सरोज सब हरषे लोचन-भृंग।।

उत्प्रेक्षा अलंकार –

जब उपमेय में उपमान की बलपूर्वक संभावना व्यक्त की जाती है, तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहां संभावना अभिव्यक्ति हेतु जनु,जानो, मनु ,मानो, निश्चय ,प्राय:, बहुदा ,इव,खलु आदि शब्द प्रयुक्त किये जाते है।

 उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद होते हैं।

  1. वस्तुतप्रेक्षा
  2. हेतूत्प्रेक्षा
  3. फ्लोत्प्रेक्षा

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण- 

तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। 
झुके कूल सो जल परसन हित मनहु छुआए।।
चमचमात चंचल नयन, बीच घूँघट पट झीन।
मानहु सुर सरिता विमल जल बिछरत दोऊ मीन।।

विरोधाभास अलंकार 

जहां वास्तविक विरोध ना होते हुए भी विरोध का आभास हो वहां विरोधाभास अलंकार होता है।जैसे

या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहीं कोय।
ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रंग त्यों-त्यों उज्जवल होय।।
तंत्रीनाद कवित्त रस सरस राग रति रंग
अनबूड़े बूड़े तरे जे बूड़े सब अंग।

उदाहरण अलंकार 

एक बात कह कर उसकी पुष्टि हेतु दूसरा समान कथन कहा जाए ,तब वहां उदाहरण अलंकार होता है।

इस अलंकार में ज्यों, जिमि , जैसे, यथा आदि वाचक समानता दर्शाने हेतु शब्द प्रयुक्त होते है।जैसे-

जो पावै अति उच्च पद, ताको पद निदान।
ज्यों तपि-तपि मद्यह्यां लौं, अस्त होत है भान।।
 नीकी पै फीकी लगै, बिनु अवसर की बात।
जैसे बरनत युद्ध में, नहिं श्रृंगार सुहात।।

3.उभयालंकार

जहां अलंकार का चमत्कार उसके शब्द और अर्थ दोनों में पाया जाए तो वहां उभयालंकार अलंकार होता है। 

श्लेष अलंकार उभयालंकार की श्रेणी में आता है।शब्द के आधार पर शब्द श्लेष तथा अर्थ के आधार पर अर्थ श्लेष।

श्लेष अलंकार

जब कोई एक शब्द एकाधिक अर्थों में प्रयुक्त हो, तब वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

श्लेष अलंकार के दो भेद होते हैं।

  1. शब्द श्लेष
  2. अर्थ श्लेष

जब कोई शब्द अपने एक से अधिक पर प्रकट करें तो उस शब्द के कारण वहां शब्द श्लेष होता है और जब श्लेष का चमत्कार शब्द के स्थान पर उसके अर्थ में निहित हो तो वहां पर अर्थ श्लेष होता है। अर्थ श्लेष में शब्द का पर्यायवाची शब्द रख देने पर भी श्लेष का चमत्कार बना रहता है।

श्लेष अलंकार के कुछ उदाहरण

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून ।।

यह पानी शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है चमक, इज्जत और जल ।

अर्थ श्लेष-

नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोय। 
जेतो नीचो ह्रै चलै तेतो ऊँचो होय।।

यहां प्रयुक्त ‘ऊँचो‘ शब्द ‘ऊँचाई‘ तथा ‘महानता‘ को दर्शाता है।

Conclusion On Alankar In Hindi – इस इस पोस्ट में हमने अलंकार क्या है और कितने प्रकार के होते हैं (Alankar In Hindi) के बारे में बात की है।आपको यह पसंद आया होगा इसे अपने करीबियों के साथ share करना न भूले।

About Kavish Jain

में अपने शौक व लोगो की हेल्प करने के लिए Part Time ब्लॉग लिखने का काम करता हूँ और साथ मे अपनी पढ़ाई में Bed Student हूँ।मेरा नाम कविश जैन है और में सवाई माधोपुर (राजस्थान) के छोटे से कस्बे CKB में रहता हूँ।

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